मुखिआ मुखु सो चाहिऐ,खान पान कहुं एक।
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक।।
श्रृषिकेश के गीता भवन में नवरात्रि के अवसर पर नौ दिन रामायण पाठ होता है।रामायण प्रारम्भ बाल कांड से शुरू होकर अन्त लंका कांड तक इन नौ दिनों में खत्म होता है।इस बार मुझे भी झ्समें भाग लेने का सुअवसर प्राप्त हुआ। करीब 1500 पुरुष एवं महिलाएं एक साथ पाठ करते है।
बचपन में घर में रामायण पढने का खूव अवसर प्राप्त होता था पर मै केवल अर्थ ही पढ़ता था ।लंका कांड मेरा प्रिय अध्याय था।पर चौपाई समझ में नहीं आती थी केवल अर्थ ही पढता था।बड़े होने पर पढ़ाई लिखाई ,नौकरी के चक्कर में रामायण भूल सा गया था।घर के पास अखंड रामायण होता था तो मै तो बहुत चिढ़ता था क्योंकि इसमें रामायण की चौपाई सुनाई ही नहीं देती है केवल बाद्य यत्रों का शोर पूरी स्पीड में रात भर बजता है जो मुझे रात भर सोने नही देता है।
आज अयोध्या कांड में उपरोक्त चौपाई पढी गई तो मुझे समझ में आया कि तुलसीदास जी इतने बर्षों पूर्व भी समाजबाद को समझते थे जवकि उस समय राजतञं का युग था ।इस छोटी सी चौपाई आज ज्यादा सार्थक लगती है।मुख से तो हम खाते है परन्तु यह खाना शरीर के सव अगों को विवेक के अनुसार पहुंचता है।यही होना भी चाहिए।
आज जो शासक बर्ग है किसी अंग को ज्यादा खिला रहा है कोई भाग सूख कर मरा जा रहा है ।पहले तो अपने पेट में ही भरने की भरपूर कोशिश होती है अगर पेट में जगह नहीं बचती है तो अपने घर के सदस्यों के पेट में डाला जाता है।फिर रिश्तेदारों का पेट भरा जाता है।
यह सव बातें बहुत पुरानी हो चुकी है आप भी पढ़ कर बोर से हो रहे होगें कि क्या प्राचीन इतिहास बता रहे है।
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक।।
श्रृषिकेश के गीता भवन में नवरात्रि के अवसर पर नौ दिन रामायण पाठ होता है।रामायण प्रारम्भ बाल कांड से शुरू होकर अन्त लंका कांड तक इन नौ दिनों में खत्म होता है।इस बार मुझे भी झ्समें भाग लेने का सुअवसर प्राप्त हुआ। करीब 1500 पुरुष एवं महिलाएं एक साथ पाठ करते है।
बचपन में घर में रामायण पढने का खूव अवसर प्राप्त होता था पर मै केवल अर्थ ही पढ़ता था ।लंका कांड मेरा प्रिय अध्याय था।पर चौपाई समझ में नहीं आती थी केवल अर्थ ही पढता था।बड़े होने पर पढ़ाई लिखाई ,नौकरी के चक्कर में रामायण भूल सा गया था।घर के पास अखंड रामायण होता था तो मै तो बहुत चिढ़ता था क्योंकि इसमें रामायण की चौपाई सुनाई ही नहीं देती है केवल बाद्य यत्रों का शोर पूरी स्पीड में रात भर बजता है जो मुझे रात भर सोने नही देता है।
आज अयोध्या कांड में उपरोक्त चौपाई पढी गई तो मुझे समझ में आया कि तुलसीदास जी इतने बर्षों पूर्व भी समाजबाद को समझते थे जवकि उस समय राजतञं का युग था ।इस छोटी सी चौपाई आज ज्यादा सार्थक लगती है।मुख से तो हम खाते है परन्तु यह खाना शरीर के सव अगों को विवेक के अनुसार पहुंचता है।यही होना भी चाहिए।
आज जो शासक बर्ग है किसी अंग को ज्यादा खिला रहा है कोई भाग सूख कर मरा जा रहा है ।पहले तो अपने पेट में ही भरने की भरपूर कोशिश होती है अगर पेट में जगह नहीं बचती है तो अपने घर के सदस्यों के पेट में डाला जाता है।फिर रिश्तेदारों का पेट भरा जाता है।
यह सव बातें बहुत पुरानी हो चुकी है आप भी पढ़ कर बोर से हो रहे होगें कि क्या प्राचीन इतिहास बता रहे है।