सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

मुखिआ मुखु सो चाहिऐ,खान पान कहुं एक।
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक।।
श्रृषिकेश के गीता भवन में नवरात्रि के अवसर पर नौ दिन रामायण पाठ होता है।रामायण प्रारम्भ बाल कांड से शुरू होकर अन्त लंका कांड तक इन नौ दिनों में खत्म होता है।इस बार मुझे भी झ्समें भाग लेने का सुअवसर प्राप्त हुआ। करीब 1500 पुरुष एवं महिलाएं एक साथ पाठ करते है।
                                        बचपन में घर में रामायण पढने का खूव अवसर प्राप्त होता था पर मै केवल अर्थ ही पढ़ता था ।लंका कांड मेरा प्रिय अध्याय था।पर चौपाई समझ में नहीं आती थी केवल अर्थ ही पढता था।बड़े होने पर पढ़ाई लिखाई ,नौकरी के चक्कर में रामायण भूल सा गया था।घर के पास  अखंड रामायण  होता था तो मै तो बहुत चिढ़ता था क्योंकि इसमें रामायण की चौपाई सुनाई ही नहीं देती है केवल बाद्य यत्रों का शोर पूरी स्पीड में रात भर बजता है जो मुझे रात भर सोने नही देता है।
             आज अयोध्या कांड में उपरोक्त चौपाई पढी गई तो मुझे समझ में आया कि तुलसीदास जी इतने बर्षों पूर्व भी समाजबाद को समझते थे जवकि उस समय राजतञं का युग था ।इस छोटी सी चौपाई आज ज्यादा सार्थक लगती है।मुख से तो हम खाते है परन्तु यह खाना शरीर के सव अगों को विवेक के अनुसार पहुंचता है।यही होना भी चाहिए।
             आज जो शासक बर्ग है किसी अंग को ज्यादा खिला रहा है कोई भाग सूख कर मरा जा रहा है ।पहले तो अपने पेट में ही भरने की भरपूर कोशिश होती है अगर पेट में जगह नहीं बचती है तो अपने घर के सदस्यों के पेट में डाला जाता है।फिर रिश्तेदारों का पेट भरा जाता है।
            यह सव बातें बहुत पुरानी हो चुकी है आप भी पढ़ कर बोर से हो रहे होगें कि क्या प्राचीन इतिहास बता रहे है।
        


         

गुरुवार, 24 सितंबर 2015

वन रैंक वन रिश्वत OROR

OROR वन रैंक वन रिश्वत

वन रैंक वन पेन्सन का मामला करीब करीब स़ुलझ गया है पर इसे देख कर समाज के दूसरे बर्ग से भी  समानता की मांग उठने लगी है।
              कल एक वरिष्ट भष्ट नेता मिले उनका कहना था कि  हम तो 70 के दशक के भ्रष्ट हैं, तब मंत्री को भी रिश्वत में हद से हद 20-30 करोड़ मिलते थे। हाल के मंत्री तो एक-एक घोटाले में अरबों-खरबों कमा गए। टेलीकॉम घोटाले में किसी मंत्री ने 1,76,000 लाख करोड़ रुपये अंदर कर लिए थे। समान रैंक, समान रिश्वत का फंडा लागू हो, तो हर मंत्री को कम से कम 1,76,000 लाख करोड़ की रकम मिलनी ही चाहिए।

मंत्रियों की समानता अगर इस स्तर पर होने की बात हो, तो समूची भारतीय अर्थव्यवस्था लुट लेगी, फिर भी मंत्रियों में वैसी वन रैंक, वन रिश्वत वाली समानता स्थापित न हो पाएगी।


मंत्री तो समानता से वंचित ही रहने वाले हैं। देश गरीब है, उनके लेवल की समानता अफोर्ड न कर सकता।
             
पर कई विभागों की समानता तो स्थापित हो सकती है। प्राइमरी शिक्षा विभाग के चपरासी और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के चपरासी के बीच तो समान रैंक, समान रिश्वत लागू हो सकती है। प्राइमरी शिक्षा विभाग का चपरासी इनकम टैक्स के आम चपरासी के मुकाबले कतई कुपोषित लगता है।


यूं हो कि जो चपरासी इनकम टैक्स में खराब काम करे, उसे बतौर दंड प्राइमरी एजुकेशन में भेज दिया जाए और प्राइमरी शिक्षा में कोई चपरासी अगर ठीक-ठाक काम करे, तो उसे इनकम टैक्स में भेज दिया जाए, कुछ समय के लिए। इस तरह से हम पूरी तौर पर तो नहीं, पर आंशिक तौर पर तो समान रैंक, समान रिश्वत की व्यवस्था लागू कर सकते हैं।


दिल्ली पुलिस की रिश्वत से ईर्ष्याग्रस्त उत्तराखंड का एक पुलिस वाला बता रहा था कि समान रैंक तो दूर, उत्तराखंड के ऊंची रैंक के पुलिस अफसर की भी वैसी रिश्वत नहीं है, जैसी आम तौर पर दिल्ली पुलिस के कॉन्स्टेबल को मिल जाती है। उत्तराखंड पुलिस को दिल्ली पुलिस में मौके मिलने चाहिए, समान रैंक-समान रिश्वत का मौका मिलना चाहिए।


पूरे तौर पर नहीं, तो आंशिक तौर पर समान रैंक, समान रिश्वत लागू होनी चाहिए।
              इस तरह पूरे देश में समानता लागू होना चाहिए क्योकि हमारा संविधान भी समानता के अधिकार की बात करता है।कई आफिसों में कुछ सीटें कमाई की होती है कुछ सूखी यह भेदभाव बन्द होना चाहिए कुछ थाने काफी मालदार होते है कुछ काम चलाऊ ।यह भेद भाव खत्म होना चाहिए।इसलिए 0R0R लागू होना ही चाहिए।
            इस बारे में आप की क्या राय है कृपया बताएं।

शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

स्वामी राम सुखदास जी महराज

स्वामी रामसुख दास जी महराज विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे जितने संतो को मैने देखा सुना उनसे अलग थे स्वामी जी ।स्वामीजी ने न तो शिष्य बनाए और न तो व्यक्तिवाद को बढाबा दिया।बहुत बड़ी बड़ी बाते ये साधारण शब्दो में कह जाते थे स्वामी जी यहीं ऋषिकेश में गीता भवन में रहते थे ।प्रस्तुत है इनके बिचारों की एक छोटी सी झाकीं। 


जन्मदिनपर उत्सव मनाना उचित है या अनुचित? 


किसीने पूछा है कि जन्मदिन मनाना गलत है क्या?

उत्तरमें निवेदन है कि नहीं।
यह अपनी-अपनी मर्जी है।

जन्मदिन मनाना उचित है या अनुचित-इसपर थोड़ासा विचार करलें।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी  महाराज इधर ख्याल करवाते हुए कहते हैं कि लोग जन्मदिनपर खुशी मनाते हैं (कि इतने वर्ष आ गये,इतने वर्ष जी गये) अरे खुशी काहेकी? इतने वर्ष आ गये नहीं,चले गये,इतने वर्ष जी गये नहीं,इतने वर्ष मर गये।

यह खुशीका दिन नहीं है,यह तो रोनेका दिन है।

(हम इतने वर्ष मर गये और अभी तक असली काम(भगवत्प्राप्ति) बना नहीं,यह जानकर रोना आना चाहिये)।

इस प्रकार हमको होस आना चाहिये।

हमको चेतानेके लिये ऐसा कहते हैं,जन्मदिन मनानेकी मनाहीका उध्देश्य नहीं है।

अगर कोई केवल  जन्मदिन मनाना छोड़दे और चेत नहीं करे तो कोई बड़ी बात थोड़े ही है!इसी प्रकार  कोई जन्मदिन मनाता है और चेत कर लेता है तो कोई मामूली(छोटी) बात थोड़े ही है।

इसलिये जरूरी बात तो है चेत करना,न कि जन्मदिन मनाना-न मनाना।

जन्मदिन मनाना या न मनाना कोई खास बात नहीं है।खास बात है होस(चेत) होना।

वास्तवमें तो जन्मदिन मनाना चाहिये भगवानका।

जिस दिन भगवानका जन्म(अवतार) होता है,उस दिन आनन्द मंगल हो जाते हैं।लोग उस दिन उत्सव मनाते हैं।

मनुष्यके जन्मदिनका कोई महत्त्व नहीं है अगर वो भगवद्भक्ति करके  मरणदिनसे मुक्त नहीं हो गया हो तो।

जो भगवद्भक्ति करके भगवानको प्राप्त कर लेते हैं, जन्म-मरणसे छूट जाते हैं,वे महात्मा हो जाते हैं।उनके

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजने बताया कि महात्मा जिसदिन शरीर छोड़ते हैं तो उनका निर्वाणदिवस(शरीरका मरणदिन)  मनाया जाता है कि आजके दिन वो भगवानसे मिले (आजके दिन परमात्माको प्राप्त हुए)।

शरीर छोड़नेपर महात्मा विभु हो जाते हैं अर्थात् सर्वव्यापक हो जाते हैं।जैसे भगवान सर्वव्यापक हैं,ऐसे ही महात्मा भी सर्वव्यापक हो जाते हैं।सर्वव्यापी(विभु) भगवानमें मिलकर महात्माभी सर्वव्यापी हो जाते हैं।

महात्माओंकी समाधीपर भगवानके चरणचिह्न और शंख,चक्र आदिके निशान होते हैं।जिसका अर्थ है कि वो (शंख चक्र गदा और पद्म धारण करनेवाले) भगवानके चरणोंमें मिल गये।

(संत-महात्माओंका भगवानसे अलग अपना अस्तित्व (स्थान,चरणचिह्न आदि) नहीं होता)।

महात्मा जिस दिन शरीर छोड़कर भगवानसे मिले,वो दिन आनन्दका दिन हो जाता है।उस दिन लोग उत्सव मनाते हैं।

जो महात्मा उत्सव मनवाना आदि चाहते नहीं हों तो उनके निर्वाण-दिवसपर उत्सव आदि नहीं करने चाहिये।

(श्री स्वामीजी महाराजके लिये भी ऐसी ही बात समझनी चाहिये)।

एक बारकी बात है कि श्री स्वामीजी महाराज गीताभवन (ऋषिकेश) में विराजमान थे। उस समय एक सज्जन कोई विशेष-सामग्री लाये।

उनसे पूछा गया कि यह सामग्री क्यों लाये हो?तब वो सज्जन संकोचपूर्वक धीरेसे बोले कि आज महाराजजीका जन्मदिन है,इसलिये लाये हैं।

यह देखकर श्री महाराजजीने पूछ लिया कि क्या बात है? तब बात बतादी गयी कि आज आपका जन्मदिन है। यह सामग्री आपके जन्मदिनपर लाये हैं।

सुनकर श्री महाराजजी झुँझलाते हुएसे और अरुचि जताते हुए बोले कि क्यों करते हैं ऐसा?(यह नयी रीति क्यों शुरु करते हैं!)।

ज्यादा जोरसे तो श्री महाराजजी इसलिये नहीं बोले कि कहीं वो अपना अपमान समझकर दुखी न हो जायँ(वो सज्जन प्रतिष्ठित और श्रध्दावाले थे)।

वो सज्जन समझगये कि श्री स्वामीजी महाराजको जन्मदिनपर ऐसा कुछ विशेष करके महत्त्व देना पसन्द नहीं है।

वो सज्जन कुछ भी नहीं बोल पाये और चुपचाप चले गये।

इस प्रकार श्री स्वामीजी महाराज जन्म-दिवसपर तो उत्सवको महत्त्व देते ही नहीं थे,निर्वाण-दिवसपर भी उत्सवको महत्त्व नहीं देते थे।

अगर महत्त्व देते तो सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दकाके निर्वाण-दिवसपर उत्सव क्यों नहीं मनवाते?।

इस प्रकार इन बातोंसे हमलोगोंको भी शिक्षा लेनी चाहिये और होस में आना चाहिये।

------------------

बुधवार, 19 अगस्त 2015

                  नागपचंमी
नागपचंमी का त्योहार क्यों मनाया जाता है इस बारे में बहुत सी कथा कहानियाँ प्रचलित है।हम लोगो के बचपन में इस दिन गांव में खेल कुश्ती और अखाडे का आयोजन होता था।इसी त्योहार के साथ हिन्दू त्योहारों की शुरुआत होती है। इस दिन गांव में अच्छे पकवान बना करते थे ।मदारी लोग आकर नाग देवता के दर्शन कराते थे।आज शाम हम बाजार में सब्जी लेने गये थे तभी एक मदारी सांप दिखाने आ गया ।उसकी बीन कोकाकोला की बोतल में छेद कर बनी थी यह आविष्कार भारत में ही सभंव है।

बुधवार, 29 जुलाई 2015

हाय ये मजबूरियां

        हाय रे ये मजबूरियां 

छोटे छोटे बच्चे कहीं कलाकार  का काम करते दिख जाते है तो बड़ा आश्चर्य होता है कि कैसे यह इस उम्र में यह सव कर लेते हैं चाहे सर्कस के बच्चे हों या फिल्म में बाल कलाकर।कहीं पहले पढा था कि उडीसा मे एक छ्ह साल की बच्ची 60 किमी की दौड़ लगा देती है ।बाद में प्रेस में हल्ला मचा तो उसकी दौड़ बन्द करनी पडी कयोकि  इस बच्ची की हडियों के टेढे हो जाने का खतरा था।इसी ढंग से अभी प्रर्दशित फिल्म बगरंगी भाई जान में बाल कलाकार का चयन एक हजार बच्चियों के बाद किया गया। टीवी सीरियल उड़ान में चकोर का अभिनय देख कर लगता है कि  कितना रियाज करना होता होगा 
             यह तो हुआ उन लोगों की बात जो बहुत मजबूरी में काम नहीं करते है परन्तु बहुत से बच्चे जो रोटी के लिए काम करते है उनके दर्द को जानने वाला कोई नहीं है ।आज शाम हमारे कालोनी में रस्सी पर करतब दिखाने वाली लड़की को देखा तो यह देख कर यह सोच आई कि कहीं यह लड़की रस्सी से गिर गई तो इसके अस्पताल का खर्च कौन उठायेगा।पर हाय रे ये मजबूरी।

बुधवार, 15 जुलाई 2015

Mountain Man


             Mountain Man
             दशरथ मांझी
आज टीवी पर फिल्म Mountain Man का Ad. आ रहा था पहले तो मैने चेनल बदलना चाहा पर पता नहीं क्या हुआ उसी को देखने लगा।फिर दशरथ माझी का नाम आया तो थोडी उत्सुकता बढी फिर मैने दशरथ मांझी के बारे में जानने का  प्रयास किया तो मुझे पता चला कि मेरा सामान्य ज्ञान कितना कम है।
                   मै एक ऐसे व्यक्ति के बारे में नहीं जानता जिसने एक असम्भव काम को सम्भव बनाया।दशरथ मांझी का प्यार शाहजंहा से कहीं अघिक बडा था।शाहजंहा का बनाया ताज को दुनिया देखने जाती है पर आफशोश कि मांझी का नाम भी हम नहीं जानते हैं।शाहजहां के पास तो असीम संसाधन था पर मांझी के पास तो केवल हथौडा एवं एक टोकरी थी।
               
दशरथ मांझी के बारे में जो कहा जाए वह कम है. वे करिश्माई शख्स थे. जिस तरह मुगल बादशाह शाहजहां ने अपने प्यार की खातिर संगमरमर का ताज महल बना डाला था, उसी तरह उस इंसान ने अपनी पत्नी की खातिर पहाड़ का सीना चीर डाला और अपना पूरा जीवन सड़क बनाने के लिए झोंक दिया. उस शख्स ने दिन देखा, न रात देखी, उसका सिर्फ एक ही लक्ष्य था, पहाड़ को काटकर राह बनाना, जिससे उसका जीवन आसान हो सके, जिसे वे प्यार करता था। यह किसी जादुई कहानी से कम नहीं है लेकिन अंतर सिर्फ इतना है कि यह सच है.
दशरथ मांझी का जन्म 1934 में हुआ इनकी पली का नाम फागुनी देवी था फागुनी देवी की मृत्यु 1959 मे हुई जव वह पहाड के बीच से अपने पति को खाना देने जा रहीं थी ।वह पहाडों में फिसल कर गिर गई थी।मांझी बिहार में गया के पास एक गावं के रहने वाले थे ।यह पेशे से मजदूर थे।इनके गांव से अस्पताल की दूरी 70 किमी थी ।मांझी ने अपने अकेले दम पर 22 साल पहाड़ को काट कर यह दूरी 15किमी कर दिया।मांझी ने जव काम शुरू किया तो लोग उन्हें पागल कहते थे ।बाद मे कुछ लोगो ने खाना पहुंचाना शुरू किया।माझां ने 360 फुट लम्बे एवं 25 फुट गहरे पहाड़ को काट कर 30फुट चौडी सडक से अपने गावं को ब्लाक बजीरगंज को जोड़ दिया ।
      
              आज माझीं के नाम पर फिल्म बन रही है परन्तु उनके एकलौते बेटे बेहद गरीवी में जीवन काट रहे है 
                  ऐसे मांझी एवं उनके जज्बे को बार बार सलाम।     

मंगलवार, 14 जुलाई 2015

नकली चावल

               प्लास्टिक के चावल

       खतरे का असली समय अब आ गया है।अव तक जो नकली चीजे आती थी उन्हें हम उपयोग में लाना छोड़ देते है या उपयोग में कम लाते हैं परन्तु अब जो खबर आ रही है वह बेहद भयानक एवं डराने वाली है।कुछ दिन पहले टीवी में चीन की एक फैक्टरी में नकली चावल बनता दिखाया जा रहा था।साथ में यह भी बताया कि यह चावल दक्षिण भारत में बिक रहा है ।कल खवर आई कि गुजरात के किसी शहर में यह चावल 29रूपया किलो बिक रहा है।मतलब यह कि खतरा सिर पर खड़ा है ।हो सकता है कि यह चावल हम लोगों के क्षेञ मे भी बिक रहा हो अतएव हमे बहुत सावधान रहने की जरुरत है ।यह  यह चावल आलू, शकरकंद और सिंथेटिक
रेसिन से बना चावल है। यह आसानी से नहीं पचता
और कई गंभीर बीमारियों का कारण बनता है। इसी
तरह, चीन में एक खास तरह का चावल पैदा होता है
वुनचांग, जो खुशबू से पहचाना जाता है। इसकी
पैदावार महज आठ लाख टन होती है, लेकिन दुनिया
भर के बाजारों में एक करोड़ टन चावल हर साल बेचा
जाता है। यानी 90 लाख से टन ज्यादा मिलावटी
चावल लोग खाते हैं।
                  चावल रोटी दाल यह तो हम लोगों का रोज का खाना है इसमे मिलावट होना जीवन से खेलना है।
              चीन अपने सस्ते  सामानों के लिए मशहूर है परन्तु इतना ही बदनाम है अपने नकली सामानों के लिए।यहां हम कुछ चीन द्वारा बनाए जा रहे नकली चीजों की सूची बताते हैं_

1चूहे का मटन : चूहों, ऊदबिलाव और लोमड़ियों के
मांस में रसायन मिलाकर मटन के रूप में बेचा जाता है।
वेई नामक एक विक्रेता ने खुलासा किया कि वह दस
करोड़ रुपए का मांस बेच चुका है। उसने चूहे, ऊदबिलाव
और लोमड़ी के मांस में नाइट्रेट, जिलेटिन तथा
कार्मिन मिलाया था।
2. कैमिकल टोफू : यह सोया मिल्क से बनने वाली
पनीर जैसी डिश है। दो फैक्टरियों में मारे गए छापों
में पता चला कि वहां आटे में मोनोसोडियम
ग्लूटामेट और रंग मिलाकर नकली टोफू बनाए जा रहे
हैं। कहीं-कहीं चमड़े को कैमिकल में गलाकर भी टोफू
बेचे जा रहे थे।
3. सुअर का मांस : दुनियाभर में सुअर के पतले मांस
की जबरदस्त मांग रहती है। इसके लिए उन्हें 'लीन मीट
पावडर' खिलाया जाता है। यह इनसानों के हार्ट के
लिए बहुत हानिकारक है। 2002 में दुनियाभर में
प्रतिबंध लग चुका है, लेकिन चीन में कुछ मीट
प्रोसेसिंग कंपनियां अब भी इस्तेमाल कर रही हैं।
4. गत्ते की ब्रेड : चीनी सड़क विक्रेता गत्ते से डबल
रोटी तैयार करते थे। इसके लिए वे केमिकल में गत्ते को
मिलाकर मुलायम करते फिर उसमें सुअर की चर्बी और
फ्लेवर्ड पाउडर मिलाते थे। इसके बाद इसका स्टफ
बनाकर भाप में पकाते थे। मजेदार बात यह है कि इस
रिपोर्ट का खुलासा करने वाले सीटीवी के पत्रकार
को हिरासत में लिया था। चीनी सरकार ने कहा
कि विदेशी मीडिया इस मामले को काफी उछाल
रही है। दरअसल, यह सिर्फ अफवाह है।
5. नकली शहद : चीन में नकली शहद सबसे ज्यादा
जिनान प्रांत में बिकता है। एक किलो नकली शहद
बनाने में 10 युआन का खर्च आता है, जो कि 60 युआन
में बिकता है। मजेदार बात यह है कि नकली शहद
असली शहद से भी ज्यादा असली और स्वादिष्ट
लगता है। इस खबर के सामने आने के बाद चीन के
अखबारों में असली और नकली शहद की पहचान के
लिए निर्देश छापे गए थे। चीन दुनिया का सबसे बड़ा
शहद उत्पादक देश है, जो दूसरे देशों में भी इसका
निर्यात करता है। एक अध्ययन में पता चला है कि
फ्रांस में बेचे गए कुल शहद में से 10 फीसद नकली था,
जो या तो पूर्वी यूरोप में बना था या चीन में।
6. नकली अंडा : मुर्गी के अंडे भी कृत्रिमतौर पर
बनाने के मामले में भी चीन काफी चर्चित रहा है।
फर्जी अंडे का खोल कैल्सियम कार्बोनेट से तैयार
किया जाता था। वहीं, अंडे का पीला व सफेद
हिस्सा क्रमश: सोडियम एल्गीनेट, फिटकरी,
जिलेटिन, खाने योग्य कैल्सियम क्लोराइड, पानी
और खाने का रंग डालकर बनाया जाता था। सबसे
पहले सोडियम एल्गीनेट और गरम पानी को मिलाकर
नकली अंडे के खोल में डाला जाता था। इसके बाद
उसमें जिलेटिन, बेनजॉइक एसिड, एलम समेत दूसरे
केमिकल के जरिए अंडे का सफेद द्रव्य तैयार किया
जाता था। अंडे का खोखा तैयार करने के लिए
पैराफिन मोम, जिप्सम पाउडर, कैल्सियम पाउडर
सहित अन्य चीजों का उपयोग किया जाता है।
7. नकली राइस नूडल्स : दक्षिण चीन में 2010 में सड़े
अनाज और कैंसर पैदा करने वाली चीजों जैसे सल्फर
डाईऑक्साइड को मिलाकर राइस नूडल्स बनाए गए
और भारी मात्रा में बेचे गए थे। दक्षिण चीन के
डोंगुआन शहर में 50 फैक्टरियां प्रतिदिन बासी व सड़े
अनाज से करीब पांच लाख किलोग्राम रेसेदार राइस
नूडल्स का उत्पादन कर रही थीं। उत्पादन करने
वाली फैक्िट्रयों में खराब चावल को ब्लीच करने के
बाद उसमें सल्फर डाई ऑक्साइड की तरह की अन्य
चीजें मिलाकर चावल से बनने वाले नूडल्स की
अपेक्षा तीन गुना अधिक राइस नूडल्स बनाती थीं।
जब इन नकली राइस नूडल्स को कुछ सुवरों को
खिलाया गया, तो पाया गया कि उनके अंग
कमजोर हो गए थे और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं
हो गईं थीं।
8. नकली शराब : चीन के सेंट्रल टेलीविजन
(सीटीवी) की रिपोर्ट में बताया गया था कि
चीन में बिकने वाली करीब आधी शराब नकली है।
चीन की वाइन इंडस्ट्री में काम करने वाले लोगों
का मानना है कि देश में बिकने वाली करीब 90
फीसद प्रीमियम वाइन नकली है। इस समस्या से
निजात पाने के लिए गुआंगडोंग प्रांत में वाइन
टेस्टिंग सेंटर की स्थापना की गई, ताकि असली
वाइन का पता किया जा सके। वाइन
उत्पादनकर्ताओं ने भी सरकार का साथ दिया और
ऐसा ऐप बनाया, जिससे वाइन की बोतलों और
कार्टून के जरिये पता लगाया जा सके कि वे असली
हैं या नकली। एक दबिश के दौरान चीन की पुलिस ने
40 हजार बोतल नकली शराब बरामद की थी,
जिसकी कीमत करीब 3.2 करोड़ डॉलर थी। वर्ष
2012 में पुलिस ने नकली शराब के 350 मामले दर्ज कर
कार्रवाई की थी।
9. डक ब्लड : चीन में बत्तख के खून को गाढ़ा कर
उसकी स्लाइस बनाई जाती हैं जो खूब महंगी
बिकती हैं। इससे डब ब्लड टोफू भी बनता है। कुछ लोग
सुअर या भैंस के खून में कैमिकल मिलाकर धोखाधड़ी करते है।